आज जब हर कोई पैसा कमाने की होड़ में सब रिश्ते नाते को दरकिनार कर देश और विदेश में नौकरी के लिए दौड़ रहा है लेकिन एक लेकिन गांधीजी की जिंदगी में एक ऐसा क्षण आया कि उन्होंने बैरिस्टर की नौकरी छोड़ दी और फिर महात्मा बने गांधी जी
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आगे चलकर लोग शायद ही यकीन कर पाए की हाड – मास का कोई ऐसा इंसान धरती पर जन्मा था समझ ही गए होंगे कि इशारा महात्मा गांधी की तरफ है
बात ऐसे विरले इंसान की जिसका नाम पूरी दुनिया में इंसानियत का पर्याय हो गया है जिसके बारे में महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आगे चलकर लोग शायद ही यकीन कर पाएगी हाड मास का कोई ऐसा इंसान इसी धरती पर जन्मा था आप समझ ही गए होंगे इशारा महात्मा गांधी की ओर है जिन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा के जरिए उस साम्राज्य को झुकने पर मजबूर किया जिसका सूरज नहीं डूबता था लेकिन भारत भूमि पर हुए इस महान यज्ञ की पहली प्रयोगशाला भारत नहीं था यह प्रयोगशाला थी सात समंदर पार एक देश में जिसे आप दक्षिण अफ्रीका के नाम से जानते हैं
महात्मा गांधी ने किया संघर्ष करने का फैसला
1915 में लौटे भारत
महात्मा गांधी के जीवन में असल बदलाव पोस्टरमारिबर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई घटना के बाद आया तभी महात्मा गांधी ने फैसला किया कि वह दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ रंगभेद के खिलाफ लड़ेंगे ट्रेन की घटना के बाद वकालत के बदले उन्होंने न्याय के खिलाफ अहिंसा संघर्ष में जुट गए रंगभेद आंदोलन में सफलता मिलने के बाद गांधी 1915 में भारत वापिस लौटे थे यहां उन्होंने ब्रिटिश शासन के नियमों के खिलाफ एक यह प्रदर्शन का आयोजन किया जिसके तहत किसी भी भारतीय को आतंकी के होने के संदेह में जेल में डाल दिया जाता था!
अपनी आत्मा आत्मकथा में महात्मा गांधी ने लिखा है कि ऐसे मौके पर अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाए भारत लौटना कायरता होता मैंने जो मुश्किलें झेली वह तो बहुत मामूली थी असल में यह रंगभेद की गंभीर बीमारी के लक्षण बुरा है मैंने तय किया कि इस रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाकर लोगों को रंगभेद की बीमारी से बचाने के लिए मुझे कम से कम कोशिश तो करनी ही चाहिए