बंगाल मे तृणमूल कांग्रेस के प्रचंड जीत के बाद बंगाल में हिंसा शुरू हो गई थी, जिसमें कहा गया की अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा हिंदुओं को मारा जा रहा है जो ज्यादातर भाजपा के कार्यकर्ता हैं और महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है।
इस तरह की खबरें मीडिया में चलाई गई।
जिसमें बहुत सारी खबरें बाद में गलत पाई गई। लेकिन मीडिया का एजेंडा बिल्कुल साफ था कि किसी भी तरीके से हमें ममता सरकार को घेरना है।
इस हिंसा को लेकर मीडिया के द्वारा एक नाम दिया गया “ममताबाड़ी” जो नक्सलवाड़ी से प्रभावित नाम है।
लेकिन आज उत्तर प्रदेश में पंचायती चुनाव के बाद पंचायत चुनाव के अध्यक्ष पद के चुनाव और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में हर रोज हिंसा की खबरें आ रही हैं।
हिंसा करने वालों में ज्यादातर भाजपा के लोगों का नाम है,
भाजपा के विधायकों के द्वारा जबरन विपक्षी पार्टियों के प्रत्याशी को पर्चा दाखिले से रोका जा रहा है।
उनके साथ मारपीट की जा रही है, और अगवा किया जा रहा है।
अभी कल की खबर की बात करें तो लखीमपुर खीरी में एक महिला सपा प्रत्याशी अनीता यादव कि कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा साड़ी खींची गई और यह सब कुछ प्रशासन के सामने हो रहा था, प्रशासन खामोश होकर अपने आका की उप मालानी कर रहा था।
लखीमपुर खीरी से ही एक और खबर आई जिसमें एक वीडियो के अंदर भाजपा विधायक शशांक शर्मा सपा प्रत्याशी को धमकाते हुए दिखे लेकिन प्रशासन के द्वारा कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।
इस तरह की तमाम घटनाओं के बाद भी हमारी मीडिया खामोश है और उत्तर प्रदेश की सरकार योगी सरकार योगी से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।
यब भी हकीकत है की हमारी मीडिया लगातार योगी आदिनाथ के महिमामंडन में उत्तर प्रदेश के अंदर रामराज होने का दावा प्रकट करती रहती है।
आम जनता और विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की बात छोड़ दीजिए उत्तर प्रदेश के अंदर न्यूज़ कवर कर रहे पत्रकारों की भी स्थिति बेहद निराशाजनक है।
प्रशासन के लोगों के साथ भाजपाई गुंडों के द्वारा उनके साथ मारपीट और बदसलूकी की जा रही है।
वह पत्रकार जो जमीनी स्तर पर उतरकर सच दिखाने का काम करते उन्हें राजनैतिक आततायियों द्वारा दबाने की कोशिश की जा रही है।
लेकिन दिल्ली में बैठे एंकर एंकराओं के कान में जू तक नहीं रेंगती। वह अपने ही पत्रकार साथियों को बचाने के लिए एक आवाज तक नहीं निकाल सकते।
आज तक चैनल की जानी-मानी पत्रकार चित्रा त्रिपाठी का एक ट्वीट वायरल हो रहा है जोकि 15 दिसंबर 2016 का है जिसमें अखिलेश सरकार को गुंडासमाजवाद की सरकार कह रही हैं।
लेकिन जब उसी उत्तर प्रदेश में हिंसा अपने चरम पर है तब चित्रा त्रिपाठी जैसी कई एंकर एंकरायें खामोश हैं और कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
इस तरह की तमाम घटनाओं के बाद यह साबित हो जाता है कि हमारी मेंस्ट्रीम मीडिया कुछ गिने-चुने लोगों के हाथ की कठपुतलियां बनी हुई है जिनके इशारे पर वाह काम करती है।